गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

आज निडर हूं

पिछले एक साल से लगातार संघर्ष चलता रहा । मां ने आैर मैंने कहां कहां धक्के नहीं खाये ।बहुत ने हौसला बढा़या, यहां जिन साथियों ने हिम्मत दी उससे भी बल मिला । बीच में कुछ से सुनना कि यह कलयुग है, इंसाफ की उम्मीद न करो, कभी निराश भी करता था। लेकिन मुझे तो यह भी लगातार लगता रहा कि हर सुबह मेरे लिए नई उम्मीद व सहारा लिए आ रही है । बस लगी रही । अपने को नए रूप में खडे़ करने की कोशिश भी साथ ही शुरू कर दी । नए पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में दाखिला लिया ।
आज तो महसूस होता है, साथ देने वाले, आगे बढ़ाने वाले निराशा करने वालों से कहीं ज्यादा थे । तभी अपनी कहानी का सुखांत, आज लिख पा रही हूं । ससुराल वालों से न्याय ने मुझे मुक्ति दिला ही दी । अब उम्मीद है । छह महीने बाद कोर्स पूरा कर मैं बढि़या रोज़गार भी पा ही लूंगी । एक सम्मानित महिला की तरह बाकी जीवन जी सकूंगी ।