शनिवार, 20 सितंबर 2008

उड्ती चिडिया ( उपन्यास अंशं)


जीवन का अधिकांश संघर्ष एक आदर्श भारतीय गृहस्थी में केवल नारी के ही कंधों पर क्यों आ पड़ता है, इस प्रश्न का उत्तर शायद हम सब देना नहीं चाहते । परम्परा आैर समाज के उदाहरण प्रचुर मात्रा में हम सब के आगे बिखरे पडे हैं जिन्हें उत्तर रूप में मेरी मां ने मेरे सामने आैर मैं भी कई बार जल्दबाज़ी आैर कई बार अपनी बच्ची की अबोधता पर तरस कर उसके सामने रख देती हूं। पांच छह साल की बच्ची जब आपसे पूछे कि मां आप ही पापा के घर क्यों आईं, शादी के बाद पापा आपके घर में रहने क्यों नहीं आए । दादा दादी तो हमारे साथ रहते हैं पर नाना नानी क्यों नहीं रहते । तो परम्परा और रीति रिवाजों का हवाला देने के अलावा आपके पास कोई उत्तर नहीं । बच्चा तो एक बार प्रश्न पूछ थोडी देर बाद दूसरी दुनिया या दूसरे प्रश्नों में उलझ गया, लेकिन मेरा मन उत्तर को व्याकुलता से तलाशता है, वैसे तो बहुत सारे उत्तर हैं कि आज कल तो लड़के भी मां बाप के पास नहीं रहते, नौकरी के चक्कर में बडे़ शहरों या विदेशों का रूख कर लेते हैं या
जीवन का अधिकांश संघर्ष एक आदर्श भारतीय गृहस्थी में केवल नारी के ही कंधों पर क्यों आ पड़ता है, इस प्रश्न का उत्तर शायद हम सब देना नहीं चाहते । परम्परा और समाज के उदाहरण प्रचुर मात्रा में हम सब के आगे बिखरे पडे हैं जिन्हें उत्तर रूप में मेरी मां ने मेरे सामने और मैं भी कई बार जल्दबाज़ी आैर कई बार अपनी बच्ची की अबोधता पर तरस कर उसके सामने रख देती हूं। पांच छह साल की बच्ची जब आपसे पूछे कि मां आप ही पापा के घर क्यों आईं, शादी के बाद पापा आपके घर में रहने क्यों नहीं आए । दादा दादी तो हमारे साथ रहते हैं पर नाना नानी क्यों नहीं रहते । तो परम्परा और रीति रिवाजों का हवाला देने के अलावा आपके पास कोई उत्तर नहीं । बच्चा तो एक बार प्रश्न पूछ थोडी देर बाद दूसरी दुनिया या दूसरे प्रश्नों में उलझ गया, लेकिन मेरा मन उत्तर को व्याकुलता से तलाशता है, वैसे तो बहुत सारे उत्तर हैं कि आज कल तो लड़के भी मां बाप के पास नहीं रहते, नौकरी के चक्कर में बडे़ शहरों या विदेशों का रूख कर लेते हैं या और कुछ लेकिन संतोषजनक उत्तर या समाधान सचमुच समझ नहीं आता । बुद्धि बहुत से संतोषजनक उत्तर देती है कि समाज की व्यवस्था चलाने के लिए, परिवार को संग
कुछ लेकिन संतोषजनक उत्तर या समाधान सचमुच समझ नहीं आता । बुद्धि बहुत से संतोषजनक उत्तर देती है कि समाज की व्यवस्था चलाने के लिए, परिवार को संगठित करने के लिए आदि आदि । लेकिन मन संतुष्ट नहीं होता !

ओह ! अभी इतना काम करना है, मैं भी जाने क्यों रोज रोज, जाने क्या क्य़ा सोचने लगती हूं ?

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