बुधवार, 19 नवंबर 2008

अब डर कैसा

मां इस बात से बहुत दुखी रहती हैं कि मैंने बचपनसे ही कभी ठीकठाक जीवन को न देखा न समझा । वो चाहती हैं कम से कम अब तो मैं जीवन को सामान्य सहज रूप में जी सकूं , जब एक मौका मिला है तो उसे छोड़ा क्यों जाए । क्या पता भगवान ने ही कुछ बेहतर जिंदगी मेरे लिए सोची हो, जीवन का नया रूप मुझे दिखाना हो । मां जब ससुराल से बचती बचाती मामा के घर पहुंची तो नानी के घर भी मेरे साथ मामा मामी या नानी के बर्ताव से मां खुश नहीं थी। मां भी इन सब बातों से कभी खीझती, कभी मुझे ही पीटने लगती, तो कभी ज्यादा ही दुलार बरसाने लगती । मैने भी जिंदगी से कभी ज्यादा उम्मीद ही नहीं की । सदा यही सोचा कि जिंदगी ऐसी ही होती है । लेकिन यह तो हमेशा लगता रहा कि मैं बाकियों से कुछ अलग हूं । मुझे बहुत कुछ नहीं करना चाहिए । पापा या डैडी के नाम पर मेरे पास बताने के लिए कुछ नहीं है । पर अब मम्मी कहती हैं कि सब कुछ ठीक हो जाएगा । इतनी मेहनत और जद्दोज़हद से मां ने अपनी शादी से पहले वाली सरकारी नौकरी पुन: हासिल की, छोटा सा ही, लेकिन अपना घर बना ही लिया, जहां मुझे और मां को कोई फालतू की बातें या ताने नहीं सुना सकता और पिछले सात आठ साल से हम दोनों मां बेटी सुकूल की जिंदगी जी रहे हैं । हालांकि मम्मी की बडी बहन और उनके बेटों ने हर दुख तकलीफ में हमें सहारा दिया । लेकिन अब हम अपने सहारे भरा पूरा जीवन जी ही रहें हैं । दीनहीन समझ कर तो कोई मेरा रिश्ता नहीं ही लाया होगा ।भाभी भी तो मुझे काफी प्यार करती हैं । जब से वो ब्याह कर कानपुर से सहारनपुर आईं हैं मैं ही तो उन्हें सब जगह ले जाती हूं । और किसी से वो कह भी नहीं पाती और भैया के पास ज्यादा समय होता नहीं । सहारनपुर के सारे बा़जा़र मैंने ही उन्हें दिखाये । एन.टी.टी भी हम दोनों ने साथ साथ ही की । भाभी से ज्यादा तो वो मेरी सहेली जैसी ही हैं । उन्होंने जरूर मेरे लिए अच्छा ही सोचा होगा। तो मां भाभी को मना नहीं कर पाई । सगाई की तारीख तय हो गई, सितम्बर में और शादी दिसम्बर में होगी ।सगाई में मेरे मुंहबोले भाई को बुलाने के लिए भाभी मना कर रही है । समझ नहीं आ रहा क्यों ?

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