शुक्रवार, 7 नवंबर 2008

अब डर कैसा (कथांश)

मैं आई तुम्हारे घर, नई नवेली दुल्हन बनकर । कितने सारे सपने लेकर ! मैं विकलांग थी, शरीर से । सोचा भी नहीं था कि कभी शादी होगी । लेकिन मेरा स्वस्थ मन कहता रहता था, मेरी भी शादी होगी, मेरे भी सपनों का राजकुमार आएगा । और एक दिन यह सच भी हो गया, मेरे लिए भी न_नुकर करते करते एक रिश्ता आ ही गया । पहले भी कई लोग रिश्ते लेकर तो आए थे, लेकिन उनका मकसद रिश्ता जोड़ने से ज्यादा सहानुभूति दिखाना ही अधिक होता था और यह मां को बातों बातों में समझ आ ही जाता था । लेकिन इस बार बात कुछ अलग थी, रिश्ता बहुत ही नज़दीक की भाभी लाई थी, वो भी अपने भाई का । मां भी हैरान थीं । लेकिन बात टाल न सकीं । उनके मन में भी आशा की किरण जाग ही उठी । मैं भी अपनी बेटी को डोली बिठाउंगी, वह भी और लड़कियों की तरह ससुराल जाएगी । चलो मेरे जाने के बाद उसका ख्याल रखने वाला उसका अपना पति होगा । उसका भी अपना भरापूरा संसार होगा । वह भी मां बनेगी और भी जाने क्या क्या ।.......
मैं भी भरपूर सोचने लगी । सपने बुनने लगी । भाभी यूं ही हवा में बात तो नहीं कर सकती , कुछ तो जरूर सोचा ही होगा तभी तो ये बात मां से सीधे सीधे कही है । पहले भी उनके भाई का एक बार उनके भाई का रिश्ता सुना था हो गया था, फिर पता नहीं चल पाया था कि कैसे वह टूट गया । इन्होंने तोड़ा या लड़की वालों की तरफ से तोड़ा गया । लेकिन उस बात को भी साल भर तो हो ही गया है, बहुत ढूंढ रहे थे कोई लड़की मिल ही नहीं रही । देखने में तो इनका भई सुमित सुन्दर नहीं तो ठीक ही है । उससे भी बुरी शक्ल वाले लड़कों की शादियां होते देखी हैं पर उसे पता नहीं लड़की क्यों नहीं मिली ? मुझसे एकाध बार भाभी के घर पर ही मिला भी, सब ठीक ही लगता है, हां बस कमाई कम है , लेकिन क्या कम कमाने वालों की शादी नहीं होती, अभी हमारे यहां तो एसी नौबत नहीं । शादी भी खूब हो जाती है और रिश्तेदार आगे गृहस्थी को भी लेदेकर चलवा ही देते हैं अपने ही मोहल्ले में कितने घर हैं जहां आदमी ज्यादा कमाते हो । ज्यादा तो औरतें ही कुछ न कुछ कर पति की इज्जत बचाने और गृहस्थी के खर्चे पूरे करने में जी तोड़ लगी रहती हैं । मैं भी कर ही लूंगी किसी तरह गुजारा । मां ने तो वैसे भी मुझे सब कुछ सिखाया ही है । सिलाई मुझे आती है, ब्यूटिशियन का काम मुझे आता है, खाना भी मैं अच्छा बना ही लेती हूं, प्राइमरी टीचर का कोर्स और नौकरी भी मैंने की ही हुई है । बस कुछ न कुछ तो हो ही जाएगा । बस बात बन जाए ।

3 टिप्‍पणियां:

Amit K Sagar ने कहा…

ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. खूब लिखें, खूब पढ़ें, स्वच्छ समाज का रूप धरें, बुराई को मिटायें, अच्छाई जगत को सिखाएं...खूब लिखें-लिखायें...
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आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं.
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अमित के. सागर
(उल्टा तीर)

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कथांश बहुत ही मार्मिक है
पूरी कथा की प्रतीक्षा रहेगी

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

very emotional
ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है ।
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है
लिखते रहिए लिखने वाले की मंज़िल यही है }
कविता और गज़ल के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है।
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